महान जीवित चोल मंदिर – तमिलनाडु: अनजान तथ्यों, इतिहास और जानकारी
तमिलनाडु की भूमि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, अद्भुत मंदिरों और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है। इन मंदिरों में से एक हैं महान जीवित चोल मंदिर, जो चोल साम्राज्य के अद्भुत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं। चोल साम्राज्य, जो लगभग 9वीं से 13वीं शताब्दी तक फैला हुआ था, दक्षिण भारत के गहनों में से एक है। इस ब्लॉग में हम चोल मंदिरों की इतिहास, विशेषताएं और कुछ अनजाने तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
चोल साम्राज्य का इतिहास
चोल साम्राज्य ने दक्षिण भारत की राजनीति, संस्कृति और समाज पर गहरा प्रभाव डाला। राजराजा चोल I और उनके पोते राजेंद्र चोल I के अधीन, चोल राज्य ने समुद्र में व्यापार और नवल शक्ति में वृद्धि की। इन राजाओं ने न केवल मंदिरों का निर्माण कराया बल्कि कला और स्थापत्य में भी सुधार किए।
महान जीवित चोल मंदिरों की विशेषताएँ
चोल मंदिरों की वास्तुकला अद्वितीय है। उनकी डिजाइन और निर्माण में स्थानीय सामग्री का उपयोग किया गया है। ये मंदिर मुख्यतः द्वीपसमूह और जंगली पक्षियों के लिए सुरक्षित स्थानों पर बनाए गए। इसके अलावा, मंदिरों का मुख्य आकर्षण उनकी दीवारों पर की गई शिल्पकला है, जो धार्मिक कहानियों और महानता को दर्शाती है।
बृहदीश्वर मंदिर, तंजावुर
बृहदीश्वर मंदिर, जिसे राजराजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है, चोल वास्तुकला का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह मंदिर राजराजा चोल I द्वारा 1010 ईस्वी में बनवाया गया था। इसकी ऊँचाई 216 फीट है और यह “गुड़ूर” के रूप में भी जाना जाता है। मंदिर के अंदर भगवान शिव की एक भव्य मूर्ति है। इसके साथ ही, इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है।
अप्पर मंदिर, तंजावुर
अप्पर मंदिर, जो बृहदीश्वर मंदिर के निकट स्थित है, अपने अद्वितीय वास्तुकला के लिए जाना जाता है। यहाँ की भित्तिचित्र कला और हनुमान की मूर्तियां इसे विशेष बनाती हैं। यह मंदिर चोल साम्राज्य के दौरान धार्मिकता और कला का सर्वोत्तम उदाहरण है।
महान जीवित चोल मंदिरों के अनजाने तथ्य
- निर्माण का अनोखा तरीका: चोल मंदिरों का निर्माण बिना किसी चूने के किया गया था। इसके लिए स्थानीय पत्थरों का उपयोग हुआ जिससे दीवारों की मजबूती बढ़ गई।
- भारतीय वास्तुकला पर प्रभाव: चोल मंदिरों का स्थापत्य केवल दक्षिण भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में वास्तुकला की एक नई धारा को प्रेरित किया।
- आकर्षक रंग: मंदिरों के अंदर की दीवारों पर जो रंग इस्तेमाल किए गए हैं, वे आज भी जीवन्त और जीवंत हैं, जो इसकी अद्भुत देखरेख का सबूत है।
- खगोल शास्त्र के अनुसार निर्माण: मंदिर का सही निर्माण खगोल शास्त्र के अनुसार किया गया था, जिससे सुबह की किरणे सीधे मुख्य देवता की मूर्ति पर पड़ें।
संरक्षण और महत्व
आज चोल मंदिरों का संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। ये मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास के भी प्रतीक हैं। यूनेस्को द्वारा इन मंदिरों को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी गई है, जिससे इनकी सुरक्षा और संरक्षण की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है।
दर्शनीय स्थल
चोल मंदिरों के साथ-साथ, इस क्षेत्र में अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं, जैसे कि तंजावुर का कला संग्रहालय और थिरुनेलवेली का मंदिर। ये सभी स्थल चोल साम्राज्य की समृद्धि और इसके सांस्कृतिक योगदान को दिखाते हैं।
निष्कर्ष
तमिलनाडु के महान जीवित चोल मंदिर एक अद्वितीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को दर्शाते हैं। इनकी वास्तुकला, शिल्पकला और धार्मिक महत्व प्रत्येक पर्यटक को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यदि आप भारतीय मंदिरों और उनकी महानता को समझना चाहते हैं तो चोल मंदिरों का दौरा अवश्य करें। यहाँ आपको न केवल इतिहास का अनुभव होगा, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की भी अद्भुत झलक मिलेगी।
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https://whc.unesco.org/en/list/250/
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